बड़ी सुनसान राहें थी
बड़ी खामोश रातें थी
बहुत रोई अकेले में
बड़ी उदास शामें थी
हमेशा ढूंढती थी मैं
वो चेहरा तो धुंधला था
बहुत बेबस हर लम्हा था
बड़ी बेजान सुबहें थी
जो तूने आज दस्तक दी
तो बदली रंगत फ़िज़ा की भी
ये सुबहा महकी सी
ये देखो शाम बहकी सी....
बड़ी खामोश रातें थी
बहुत रोई अकेले में
बड़ी उदास शामें थी
हमेशा ढूंढती थी मैं
वो चेहरा तो धुंधला था
बहुत बेबस हर लम्हा था
बड़ी बेजान सुबहें थी
जो तूने आज दस्तक दी
तो बदली रंगत फ़िज़ा की भी
ये सुबहा महकी सी
ये देखो शाम बहकी सी....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें