जानवरों की
तरह करिए
हमारे शरीर पे प्रयोग...
उनके हक़ में
बोलने वाले हैं
कई संगठन
वो कर देंगे
झंडा बुलंद..
ज़ुबान है
लेकिन
हम बेज़ुबानों से
बदतर हैं...
काश हम
सुअर से नापाक़ होते
काश हम
गाय से पूजनीय होते...
क्योंकि
हो जाते हैं
इनके नाम पे दंगे
बंट जाते हैं लोग...
अपने-अपने धरम का परचम लेके...
लेकिन देखो
कोई हमारी मौत पे लड़ने वाला नहीं है
कोई हम पर अपना अधिकार जताने वाला नहीं है
हम औरतें हैं...
गरीब परिवारों की
बेसहारा..औरतें...
हम जानवरों सी भी नहीं हैं
हमें काट दीजिए कहीं से भी
हमें फेंक दीजिए कहीं पे भी...
कोई सवाल नहीं करेगा
कोई आह नहीं भरेगा
किसी को नहीं पड़ेगा फर्क
कोई नहीं निकालेगा
हमारे लिए रैलियां
कोई नहीं रोएगा
हमारी मौत पे
क्योंकि
हम औरतें
जानवरों से भी बदतर हैं....
3 टिप्पणियां:
..लाजबाब..
Hausla afzai ke liye shukria...
Dukhad...shashakt rachna nida
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