अच्छा हो या बुरा
हर वक़्त साझा किया था
खुशी के साथ साथ
ग़म भी बांटा था हमने...
एक दूसरे को समझा जाना
तुमने मुझे,मैंने तुम्हें पहचाना था
ना कोई शिकवा किया
ना कोई शिकायत की थी...
फिर क्यों
हम हो गए जुदा
ना तुमने रोका
ना मैंने कुछ कहा...
मलाल नहीं
बस रह गई एक कसक
वादा तो किया था तुमसे
भरोसा भी दिलाया था...
ग़म की तरह
ज़िंदगी भी बांट लेने के लिए
क़दम भी बढ़ाया था...
लेकिन लौटा दिया
तुमने मुझे खाली हाथ
कह दिया
तुम्हारा नहीं
मेरे ग़म,मेरी ज़िंदगी पर
सिर्फ मेरा है अधिकार...
अब मत देना कोई सदा
मेरी ज़िंदगी में नही हो
तुम निदा...
3 टिप्पणियां:
वाह। सुन्दर भाव...
Shukria Parul:-)
खुबसूरत एहसासों के साथ ही बेहतरीन रचना .....
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