चाहे
शादी बन जाए
ज़िंदगीभर का नासूर
चाहे
विवाह में टूट जाएं
सारी मर्यादाएं
चाहे
रोज़ रौंदे जाएं
पत्नी के जज़्बात
चाहे
दिन रात होता हो
उसका अपमान
चाहे
वो मर-मर कर
जीती हो
चाहे
वो जूते-लात घूंसे
खाती हो
चाहे वो
जानवरों की तरह
पीटी जाती हो
चाहे
उसे बिस्तर पर रोज़
हवस का शिकार बनाया जाए
चाहे
उसे मुर्दा लाश
समझा जाए
कुछ फर्क नहीं पड़ता
हमारे सभ्य समाज को
क्योंकि
विवाह तो पवित्र है बंधन
इसीलिए
पति कर सकता है
उसका शोषण
उसके साथ जबरन संबंध
बना सकता है
सारी पवित्रताएं ध्वस्त
कर सकता है
विवाह एक पवित्र बंधन है
इसलिए पति को
बलात्कार का अधिकार है...
1 टिप्पणी:
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! गहरी सोच के साथ शानदार रचनाएँ और साथ ही सुन्दर चित्र के साथ उम्दा प्रस्तुती!
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