सावन में हम
झूम के नाचे तो
क़त्ल कर दिए गए
घर से पाओं
बहार निकले तो
बेड़ियाँ दाल दी गईं
किसी के संग
मुस्कराए तो
बदचलन करार दिए गए
तुम्हारे प्रस्ताव को ठुकराया
तो तेज़ाब डाल दिया गया
इश्क जो कर लिया तो
इज्ज़त के नाम पे
गला दबा दिया गया
घर में रोटी नहीं
हुई तो
बेंच दिए गए
पहले कॊख में
मारने की कोशिश
और जन्म लिया तो
मिटटी में दबा दी गई
घिन नहीं आती तुम्हें
हम वंश जननते हैं
तुम्हारे ज़ुल्म सहते हैं
शुक्र तो कभी किया नहीं
तुमने हमारा
तुम्हें तो शर्म भी
नहीं आती अपने किये पे
झूम के नाचे तो
क़त्ल कर दिए गए
घर से पाओं
बहार निकले तो
बेड़ियाँ दाल दी गईं
किसी के संग
मुस्कराए तो
बदचलन करार दिए गए
तुम्हारे प्रस्ताव को ठुकराया
तो तेज़ाब डाल दिया गया
इश्क जो कर लिया तो
इज्ज़त के नाम पे
गला दबा दिया गया
घर में रोटी नहीं
हुई तो
बेंच दिए गए
पहले कॊख में
मारने की कोशिश
और जन्म लिया तो
मिटटी में दबा दी गई
घिन नहीं आती तुम्हें
हम वंश जननते हैं
तुम्हारे ज़ुल्म सहते हैं
शुक्र तो कभी किया नहीं
तुमने हमारा
तुम्हें तो शर्म भी
नहीं आती अपने किये पे
11 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखती है आप.....:)
बहुत बढ़िया निदा|
बहुत ही संवेदनशील रचना
सादर
Shukria
वाह.. क्या खूब लिखती हो...
संवेदनशील....बहुत बढ़िया
बाह ! बहुत सुन्दर लिखा है आपने !
नई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
बढ़िया अभिव्यक्ति !!
thoughtful...
bahut achha likha hai
Shukria...
विचार-योग्य कविता
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