चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत
फिर से बन जाते हैं अजनबी
इस तरह जैसे
नदी के दो धारे...
इस तरह
जैसे सुबह और शाम
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत
वहां से
जहाँ हम मिले थे
वहां से
जहाँ से हम बिछड़े थे
वहां से
जहाँ जुदा हो गईं थी हमारी राहें
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....
तुम हम
अब एक संग हो लेते हैं
एक रास्ता
और एक मजिल कर लेते हैं
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....
करते हैं एक शुरुआत
फिर से बन जाते हैं अजनबी
इस तरह जैसे
नदी के दो धारे...
इस तरह
जैसे सुबह और शाम
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत
वहां से
जहाँ हम मिले थे
वहां से
जहाँ से हम बिछड़े थे
वहां से
जहाँ जुदा हो गईं थी हमारी राहें
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....
तुम हम
अब एक संग हो लेते हैं
एक रास्ता
और एक मजिल कर लेते हैं
चलो फिर से
करते हैं एक शुरुआत....
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब निदा जी....
कभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
नयी रचना
"फ़लक की एक्सरे प्लेट"
आभार
बहुत ही बढ़िया
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति!!
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