एक दिन
मैंने ही तुमसे कहा था
आगे बढ़ो
क्यों ठहरे हुए हो तुम
क्यों रुक गए हो मुझ पे...
कह तो दिया था तुमसे
अतीत कभी पलट कर नहीं आता
गुज़रा वक़्त कभी खुद को नहीं दोहराता
मैं बीता कल हूँ तुम्हारा
वो कल
जो लौट के नहीं आ सकता
वो कल
जो आज नहीं बन सकता है
फिर भी दिल चाहता है
सबकुछ भूलकर लौट आऊं
छटपटाती तो हूँ
सारे बंधन तोड़ के
तुझ में सिमट जाऊं
लेकिन
मुझे मेरे ही शब्द रोक लेते हैं
मैं ठहर जाती हूँ उस लम्हें में
जब कहा था तुमसे
आगे बढ़ो तुम
मेरा कहा ही तो
माना है तुमने
मेरे लिए ही तो
मुझे छोड़ के
आगे बढ़ गए हो तुम
2 टिप्पणियां:
क्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना
Shukria Sanjay ji
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