शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

ज़िंदगी समेट ली जाती...




काश बिखरे
सामान की तरह 
समेट ली जाती ज़िन्दगी...
पास रख लिए 
जाते कुछ ख़ास लम्हे...
संजो के रख लेती 
तुम्हारी दी हुई हर सौगात...
वो पहली मुलाक़ात
वो पहली नज़र 
वो पहली कशिश 
वो पहला हर्फ़
दिल में छिपा लेती 
बसा लेती
इन्हीं में अपनी दुनिया...
एक बक्से में 
ताला लगाके रख लेती 
प्यार के उस पहले एहसास को...
ज़माने से बचा लेती 
हमारे जज़्बात को....
कपड़ों की तरह
तह कर लेती 
तुम्हारे दिए हुए ग़मों को 
मिटा देती सारी सिलवटें 
तुम्हारे मेरे रिश्ते की...
काश बिखरे 
सामान की तरहा 
समेट ली जाती ज़िन्दगी...

बुधवार, 28 जनवरी 2015

तुम नहीं हो निदा...


अच्छा हो या बुरा
हर वक़्त साझा किया था
खुशी के साथ साथ
ग़म भी बांटा था हमने...
एक दूसरे को समझा जाना
तुमने मुझे,मैंने तुम्हें पहचाना था
ना कोई शिकवा किया 
ना कोई शिकायत की थी...
फिर क्यों 
हम हो गए जुदा
ना तुमने रोका  
ना मैंने कुछ कहा...
मलाल नहीं 
बस रह गई एक कसक
वादा तो किया था तुमसे
भरोसा भी दिलाया था...
ग़म की तरह 
ज़िंदगी भी बांट लेने के लिए
क़दम भी बढ़ाया था...
लेकिन लौटा दिया 
तुमने मुझे खाली हाथ
कह दिया 
तुम्हारा नहीं 
मेरे ग़म,मेरी ज़िंदगी पर 
सिर्फ मेरा है अधिकार...
अब मत देना कोई सदा
मेरी ज़िंदगी में नही हो
तुम निदा...