अलमीरा में
कुछ तलाशते हुए
हाथ लग गया वो
हरे रंग का स्वेटर...
वहीं स्वेटर
जो तुम लाए थे
बड़े शौक
बड़े प्यार से...
ये सोच के
कि
बहुत जचेगा
मुझ पे वो
हरा रंग...
हां
तुम सही थे
मैं खिल जाती हूं
उस हरे रंग में
और निखर आती है
उस
हरे स्वेटर में...
शोख, चंचल
खुद पे इतराती
फिरती हूं...
जब भी
हाथ लगाती हूं
उस हरे रंग के स्वेटर पर
हमारे रिश्ते की
पाकीज़गी को
महसूस कर लेती हूं...
वो रिश्ता जो
अधूरा होते हुए भी
पूरा था...
हम दूर होते हुए
बेहद करीब थे...
जो किसी से ना कहते
वो इक दूजे से
साझा करते...
आज भी
संभाल के रखा है
उस अधूरे से
पूरे रिश्ते को
उसी तरह
जैसे
संभाल के रखा है
तुम्हारा दिया हुआ
वो हरा स्वेटर...