गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

वो हरा स्वेटर



अलमीरा में
कुछ तलाशते हुए
हाथ लग गया वो
हरे रंग का स्वेटर...
वहीं स्वेटर 
जो तुम लाए थे 
बड़े शौक 
बड़े प्यार से...
ये सोच के 
कि 
बहुत जचेगा
मुझ पे वो 
हरा रंग...
हां 
तुम सही थे
मैं खिल जाती हूं
उस हरे रंग में
और निखर आती है
उस 
हरे स्वेटर में...
शोख, चंचल
खुद पे इतराती 
फिरती हूं...
जब भी 
हाथ लगाती हूं
उस हरे रंग के स्वेटर पर
हमारे रिश्ते की 
पाकीज़गी को 
महसूस कर लेती हूं...
वो रिश्ता जो
अधूरा होते हुए भी
पूरा था...
हम दूर होते हुए
बेहद करीब थे...
जो किसी से ना कहते
वो इक दूजे से 
साझा करते...
आज भी 
संभाल के रखा है
उस अधूरे से 
पूरे रिश्ते को
उसी तरह
जैसे
संभाल के रखा है
तुम्हारा दिया हुआ
वो हरा स्वेटर...


बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

मदर टेरेसा...



दीन-हीन
लाचार और मजबूर
हमने जिनको
कर रखा था 
समाज से बहिष्कृत...
जिनके ज़ख्म 
उनके पिछले जन्म
के पापों के फल थे
हाथों-पैरों का बिगड़ापन 
और बदसूरत सूरत...
कोढ़ी होने की
गाली...घर परिवार 
की नफ़रत भरी नज़र..
घर..गली..बस्ती 
शहरों से मीलों की दूरी..
गंधाते सड़े-गले
इंसान की जानवरों
सी बदतर ज़िंदगी..
हम जिन्हें 
ज़िंदा नहीं समझते
वो मां के आंचल में
नवजात से रहे...
करुणा...संवेदना
इंसानियत की छांव में
हरपल मुस्कराते रहे
मां के प्यार, पवित्रता में
अब मत कुछ और तलाशो
कुछ कर सकते हो तो
समाज और अपने दिमाग से
बढ़ रहे कोढ़ को हटा दो...

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

बार बार देती हूं दस्तक


अपने 
आत्मसम्मान को 
फेंक देती हूं 
नोंच कर...
ज़ोर से बांधकर 
किसी पोटली में
रख देती हूं
सारी नाराज़गी...
जवाब की उम्मीद
किए बगैर ही
खत्म कर दिए 
सारे सवाल...
सच तो 
ये है कि 
मैं रह तो सकती हूं
तुम्हारे बगैर
लेकिन 
डर इस बात का है
कि तुम्हारे पास 
कोई नहीं होगा
जो तुम्हारे 
अहंकार को सह पाएगा
कोई नहीं होगा
जो तुम्हारी 
अनकही बातों को
सुन पाएगा...
कोई नहीं होगा
जो तुम्हारी
खामोशी पढ़ पाएगा
मैं डरती हूं
तुम्हारे तन्हां
होने से...
मैं घबराती हूं
तुम्हारे 
तुम में खोने से
इसलिए
मैं बार-बार
खलल डालती हूं
तुम्हारे एकेलेपन में
इसलिए
मैं बार-बार
दस्तक देती हूं
तुम्हारे दिल पर...
इसलिए
मैं बार-बार
देती हूं दस्तक...

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

बस इक क़दम बढ़ाते...



बस 
इक कदम 
तुम बढ़ाते
इक कदम मैं...
यूं हीं
कम होते जाते
हमारे फ़ासले
थोड़ा तुम चलते
थोड़ा मैं...
हाथ जो 
अलग हो रहे थे
साथ जो 
छूट रहा था
हो जाते 
इक साथ
थोड़ा तुम 
आगे बढ़ते
थोड़ा मैं...
रिश्तों पर जमी
बर्फ यूं ही पिघल जाती
थोड़ा 
तुम प्यार जताते
थोड़ा मैं मुस्कराती...
ज़िंदगी 
यू ही गुज़र जाती
इक कदम तुम बढ़ाते
इक कदम मैं...