मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

अपने हिस्से का चाँद...



अपने हिस्से का चाँद
तुम्हारे शहर भेजा है
वो चाँद जो हमारे
इश्क़ का गवाह है
वो चाँद ...

जिससे रौशन थी हमारी दुनिया
वो चाँद
जो हमारी खुशियों का
साझेदार है
वो चाँद
जो हमारी ज़िन्दगी का
राज़दार है
वो चाँद
जो ख़फ़ा था
हमारे झगड़े पे
वो चाँद
जो उदास था
हमारे आंसुओं के संग
वो चाँद
जो ग्रहण में खो गया था
हमारे जुदा होने पे
अपने अपने हिस्से का चाँद
ले आये थे हम
वही अधूरा चाँद भेजा है
तुम्हारे शहर
शायद ये चाँद ले आये
तुम्हारी कोई ख़बर
हम दोनों का चाँद बन जाए
खुशियों का सबब....


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