रविवार, 3 मई 2015

पवित्र बंधन



चाहे 
शादी बन जाए
ज़िंदगीभर का नासूर
चाहे 
विवाह में टूट जाएं 
सारी मर्यादाएं
चाहे 
रोज़ रौंदे जाएं 
पत्नी के जज़्बात
चाहे 
दिन रात होता हो
उसका अपमान
चाहे 
वो मर-मर कर 
जीती हो
चाहे 
वो जूते-लात घूंसे 
खाती हो
चाहे वो
जानवरों की तरह
पीटी जाती हो
चाहे 
उसे बिस्तर पर रोज़
हवस का शिकार बनाया जाए
चाहे 
उसे मुर्दा लाश 
समझा जाए
कुछ फर्क नहीं पड़ता
हमारे सभ्य समाज को 
क्योंकि
विवाह तो पवित्र है बंधन
इसीलिए 
पति कर सकता है 
उसका शोषण
उसके साथ जबरन संबंध
बना सकता है
सारी पवित्रताएं ध्वस्त 
कर सकता है
विवाह एक पवित्र बंधन है
इसलिए पति को
बलात्कार का अधिकार है...

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! गहरी सोच के साथ शानदार रचनाएँ और साथ ही सुन्दर चित्र के साथ उम्दा प्रस्तुती!