बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

बस इक क़दम बढ़ाते...



बस 
इक कदम 
तुम बढ़ाते
इक कदम मैं...
यूं हीं
कम होते जाते
हमारे फ़ासले
थोड़ा तुम चलते
थोड़ा मैं...
हाथ जो 
अलग हो रहे थे
साथ जो 
छूट रहा था
हो जाते 
इक साथ
थोड़ा तुम 
आगे बढ़ते
थोड़ा मैं...
रिश्तों पर जमी
बर्फ यूं ही पिघल जाती
थोड़ा 
तुम प्यार जताते
थोड़ा मैं मुस्कराती...
ज़िंदगी 
यू ही गुज़र जाती
इक कदम तुम बढ़ाते
इक कदम मैं...

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