शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

तुम्हारी ज़िद...


तुम्हारी ज़िद है
मुझे हराने की
और मेरी ज़िद है
तुम्हें पाने की...
तुम लाख कोशिश कर लो
मुझसे दूर रहने की
मुझे अपनी यादों
जुदा रखने की
लेकिन
हार तय है तुम्हारी
मेरे अस्तित्व को
नकार नहीं सकते तुम
मेरे प्यार से
इंकार नहीं कर सकते तुम
यक़ीन है मुझे
खुद पर,
खुदा पर,
उसके वजूद पर
एक दिन जीतूंगी मैं
और हारोगे तुम
तुम नहीं हरा सकते मुझे
तुम नहीं थका सकते मुझे
तुम नहीं तोड़ सकते मेरी हिम्मत

तुम नहीं दे सकते मुझे शिकस्त....

7 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आत्मविश्वास भरी अभिव्यक्ति !
नई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 12/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

Parul Chandra ने कहा…

So good...

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत खूब...सुंदर रचना
हिमकर श्याम
http://himkarshyam.blogspot.in/

Nidakiaawaaz ने कहा…

हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया....

विभूति" ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत उम्दा बहुत सुन्दर मैम :)