शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

धीरे धीरे....

धीरे धीरे
दूर हो रही हूँ
तुम्हारी दुनिया से
रफ्ता रफ्ता
धुंधली हो रही
हैं मेरी यादें
हौले हौले
कमज़ोर हो रही
है हमारी डोर
सब कुछ
उसी तरह
जैसा तुम चाहते थे
अब परेशान
नहीं करुँगी
अब यादों में
नहीं सताऊँगी
अब रिश्ता
ढोना नहीं होगा तुम्हें
देखो
सब कुछ
बदल रहा है
धीरे धीरे
मैं जा रही हूँ
दूर
बहुत दूर
धीरे धीरे....

3 टिप्‍पणियां:

Parul Chandra ने कहा…

वाह, धीरे धीरे.... उम्दा

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कमजोर होते रिश्ते को मजबूत बनाइये
इस तरह न उनसे कहीं दूर जाइये :)

सादर

Shahnawaz Malik ने कहा…

परेशान करती रहें मगर धीरे धीरे