मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

इतने करीब थे...

हवा भी ना
गुज़र पाए इतने करीब थे
हम तुम...
एक दूसरे के
आगोश में समाये हुए
सारी दुनिया से बेफिक्र
रीति रिवाज
जीत हार
कोई मायने नहीं थे...
बस उस लम्हे में
जी रहे थे हम खुद को....
लबों की रंगत
और गर्म साँसें
जैसे
मिल गया हो खुदा हमें....
बंद आँखों से जो
ख्वाब देखा
वो सच हो रहा था...
हम साथ थे
फिर भी
नम थीं आँखे...
ना जाने क्यों
मैं नहीं देना चाहती थी
तुम्हें इस लम्हे से दूर
मैं नहीं तोडना चाहती थी
ये खूबसूरत सपना
जो सच था...
बड़ी जोर से
थामे हुए थी
इस पल को
ना जाने
अब ये ज़िन्दगी
ऐसा लम्हां लाये या नहीं......

7 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छा लिखती हैं आप।


सादर

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…


कल 21/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

कोमल भावपूर्ण रचना ..

dr.mahendrag ने कहा…

आगोश में समाये हुए
सारी दुनिया से बेफिक्र
रीति रिवाज
जीत हार
कोई मायने नहीं थे...
बस उस लम्हे में
जी रहे थे हम खुद को....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी है निदाजी आप ने ..लम्हो की बातें सदियों तक याद रहती है. आभार.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम का गहरा एहसास लिए ...

Pyar Ki Kahani ने कहा…

Maine Jab Se Tumko Dekha Hai Aisa Lagta Hai Bus Tu Hi Tu Hai. Thank You For Sharing.

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्रेम के कोमल अहसास लिए..
भावपूर्ण रचना...